It is necessary to create a situation of solution on all issues with China

Editorial: चीन के साथ सभी मसलों पर समाधान की स्थिति बनना जरूरी

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It is necessary to create a situation of solution on all issues with China

It is necessary to create a situation of solution on all issues with China: भारत व चीन के बीच पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा पर साल 2020 से पहले की स्थिति बनाने की दिशा में अगर कोई सहमति बनने जा रही है तो यह बेहतर ही है। हालांकि यह उतनी खुशी मनाने जैसी बात भी नहीं है, क्योंकि चीन के संबंध में यह पूर्व घोषित है कि उसकी किसी भी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता। चीन और भारत दोनों एशिया महाद्वीप में तेजी से आगे बढ़ रहे देश हैं। बीते कुछ वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था ने जो तरक्की हासिल की है, उससे चीन में निवेश से निवेशक अब कतराने लगे हैं। हालांकि चीन की विस्तारवादी नीतियों ने भी पूरे विश्व में उसे एक संदेहास्पद देश के रूप में स्थापित किया है।

भारत को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि चीन के साथ अभी हमारे अनेक मसले हैं, आखिर पूरे अरुणाचल प्रदेश को चीन अपना हिस्सा बताता है, जोकि उसके नेताओं की गुस्ताखी है। हालांकि मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में अगर चीन इस स्तर पर आ गया है कि वह भारत के साथ सीमा पर पीछे हटने को तैयार हुआ है तो यह भारत की राजनीतिक, कूटनीतिक रणनीति की कामयाबी ही है। निश्चित रूप से यह समापन नहीं है, अपितु इसे तो शुरुआत कहा जाना चाहिए।

गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद यहां तनाव बढ़ गया था। इसके बाद 15 जून 2021 को गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, इसमें 20 भारतीय सैनिकों ने शहादत पाई थी वहीं अनेक चीनी सैनिक भी हताहत हुए थे, जिनकी वास्तविक संख्या चीन ने आज तक नहीं बताई है। दरअसल, बीते वर्षों में भारत और चीन के बीच बहुत कुछ गुजरा है। चीन पर जहां भारत का पहले भरोसा नहीं रहा है, वहीं अब दुनिया भी उसे भरोसेमंद नहीं मान रही। महामारी कोरोना वायरस का जनक और उसे फैलाने वाला चीन अपनी कुंठा को अगर भारत के प्रति दुश्मनी निकाल कर शांत करना चाहता है तो यह उसकी भूल होगी।

इसी वजह से मोदी सरकार ने चीन पर अंकुश लगाने के लिए अनेक कदम उठाए थे। इनमें चीन से आयात को हत्तोसाहित किया गया वहीं प्रौद्योगिकी को लेकर भी चीन पर प्रतिबंध लगाए गए। इस समय भी वोकल फार लोकल का मंत्र देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन जैसे देशों के व्यापारिक प्रसार पर प्रहार करने की योजना बनाई है। अब चीनी वस्तुओं की भारत में उतनी मांग नहीं है, लेकिन फिर भी स्वदेशी का प्रसार हुआ है और अब स्थानीय स्तर पर बनाए गए उत्पादों को ही खरीदा जा रहा है।

दरअसल, नए संदर्भों में चीन को भारत के साथ तनातनी भारी ही पड़ी है। भारतीय सेना ने लद्दाख क्षेत्र में अपनी पकड़ को मजबूत कर लिया है, वहीं राफेल के आने के बाद वायुसेना भी सशक्त हो गई है। भारतीय सेना की आक्रामकता से चीन के हौसले पस्त हुए हैं। यही वजह है कि लद्दाख पर कब्जे में असफल रहने के कारण चीन सरकार को 3,448 किलोमीटर लंबी हिमालयवर्ती सीमा पर अपनी सेना को सर्दियों में भी तैनात रखना पड़ा। इसने चीनी सैनिकों की हालत खराब कर दी। बताया गया है कि लद्दाख क्षेत्र में थल सैनिकों के पस्त होने के बाद चीन ने हवाई सेनाओं की तैनाती की मुहिम शुरू की है। भारतीय सेना और वायुसेना ने सभी स्तरों पर अपने मोर्चे सुदृढ़ किए हैं। सबसे बड़ी उपलब्धि बुनियादी ढांचे की दृष्टि से रही है, क्योंकि सभी अग्रिम स्थानों के लिए सडक़ संपर्क में सुधार किया गया है। अब जोजिला दर्रा हो या दुनिया की नई सबसे ऊंची मोटर योग्य सडक़ उमलिंग ला, मार्समिक ला, या खारदुंग ला, इन्हें सीमा सडक़ संगठन की मदद से वर्ष भर सैनिकों की आवाजाही के लिए खुला रखा गया है। यानी किसी भी मौसम में सैनिक अब सीमा पर पहुंच सकते हैं।

अब हालात ऐसे हैं कि आजादी के बाद से रक्षात्मक रहे भारत ने आक्रामक रूप धारण किया है। यही वजह है कि वे देश जोकि अभी तक भारत का विरोध ही सर्वोपरि मानते थे, अब उसके पीछे आने लगे हैं। तुलनात्मक रूप से मालदीव जैसे देशों के साथ भारत की बराबरी नहीं है लेकिन जब ये देश चीन के साथ अपने संबंधों को नया आकार देते हुए भारत विरोध का बिगुल बजाते हैं तब मोदी सरकार को वह कदम उठाने ही पड़ते हैं, जोकि इन देशों को अपने कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर कर देती है।

प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा से पहले चीन के साथ इस प्रकार की सफल रणनीतिक पहल उल्लेखनीय है। हालांकि चीन अन्य मामलों पर भी अगर बातचीत और समाधान के मंच पर आता है तो यह भारत और मोदी सरकार के लिए और बड़ी कामयाबी होगी। हालांकि चीन को भी इस संबंध में विचार करना चाहिए कि दोनों देश बदलते वैश्विक माहौल में अगर साथ आते हैं तो वे सुपर पावर होंगे। हालांकि चीन को समझना और समझाना शायद बेहद कठिन कार्य है। उम्मीद है, बदलते समय के साथ हालात में और बदलाव आएगा। 
 

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